क्या आपने कभी सोचा है कि आपके बगीचे में खिलने वाले सुंदर फूल सिर्फ सजावट के लिए नहीं हैं? दरअसल, ये फूल प्रकृति की सबसे जटिल और अद्भुत प्रक्रियाओं में से एक के केंद्र में हैं – लैंगिक प्रजनन(Sexual Reproduction)। जब आप अपने घर में आम का स्वादिष्ट फल खाते हैं या गुलाब की खुशबू लेते हैं, तो आप उस अविश्वसनीय यात्रा का परिणाम देख रहे हैं जो एक छोटे से पराग कण से शुरू होकर नए पौधे के जन्म तक पहुंचती है।
CBSE कक्षा 12 के छात्रों के लिए, अध्याय 1 “पुष्पीय पौधों में लैंगिक प्रजनन” (Sexual Reproduction in Flowering Plants) न केवल परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह आपको जीवन की सबसे मौलिक प्रक्रियाओं को समझने में भी मदद करता है। इस व्यापक गाइड में, हम इस अध्याय की हर बारीकी को समझेंगे और आपकी परीक्षा की तैयारी को मजबूत बनाएंगे।
अध्ययन का उद्देश्य (Learning Objectives)
इस अध्याय में आप यह जानेंगे –
- फूलों की संरचना और कार्य को समझना
- पुष्पीय पौधों में प्रजनन अंगों की संरचना और कार्य को समझना
- नर और मादा युग्मकों (Gametes) के निर्माण की प्रक्रिया (माइक्रोस्पोरोजेनेसिस और मेगास्पोरोजेनेसिस)
- परागण (Pollination) के विभिन्न प्रकार और उनके महत्व को जानना
- निषेचन (Fertilization) की प्रक्रिया, विशेष रूप से दोहरा निषेचन (Double Fertilization)
- निषेचन के बाद के परिवर्तन: बीज (Seed) और फल (Fruit) का विकास
- भ्रूण विकास और बीज निर्माण की प्रक्रिया को समझना
- पौधों में लैंगिक और अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) की तुलना करना
इस अध्याय को पूरा करने के बाद, आप निम्नलिखित में सक्षम होंगे:

Solvefy AI
पुष्प की संरचना: प्रकृति का इंजीनियरिंग चमत्कार Nature’s Reproductive Marvel
पुष्प के मुख्य भाग और उनके कार्य
पूर्ण फूल संरचना (The Complete Flower Structure)
एक पुष्प में चार मुख्य चक्र (Whorls) होते हैं, जिनमें से प्रत्येक का प्रजनन में एक विशिष्ट कार्य होता है:
बाह्यदलपुंज और दलपुंज (Calyx and Corolla): आकर्षण टीम
बाह्यदल (Sepals) (सामूहिक रूप से कैलिक्स) और पंखुड़ियाँ (Petals) (सामूहिक रूप से कोरोला) सजावट जैसे लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में ये फूल का मार्केटिंग विभाग हैं। रंगीन पंखुड़ियाँ परागणकों (Pollinators) को आकर्षित करती हैं, जबकि बाह्यदल विकासशील फूल की कली की रक्षा करते हैं।
पुष्प वास्तव में एक रूपांतरित प्ररोह है जो प्रजनन के लिए विशेष रूप से अनुकूलित होता है। आइए इसके मुख्य भागों को समझते हैं:
पुष्पासन (Thalamus/Receptacle): यह पुष्प का आधार है जहाँ सभी पुष्पीय भाग जुड़े होते हैं। यह मजबूत और व्यापक होता है ताकि सभी भागों को सहारा मिल सके।
बाह्य दलपुंज (Calyx): ये हरे रंग की संरचनाएं हैं जो कली अवस्था में पुष्प की सुरक्षा करती हैं। प्रत्येक अलग भाग को बाह्यदल (Sepal) कहते हैं।
दलपुंज (Corolla): ये रंग-बिरंगी पंखुड़ियां हैं जो परागणकर्ताओं को आकर्षित करने का काम करती हैं। प्रत्येक अलग भाग को दल (Petal) कहते हैं।
पुमंग (Androecium): यह नर प्रजनन अंग है जिसमें पुंकेसर (Stamens) होते हैं। हर पुंकेसर में पुतंतु (Filament) और परागकोश (Anther) होता है।
जायांग (Gynoecium): यह मादा प्रजनन अंग है जिसमें एक या अधिक स्त्रीकेसर (Carpels) होते हैं।
स्त्रीकेसर की विस्तृत संरचना
स्त्रीकेसर के तीन मुख्य भाग होते हैं:
1. वर्तिकाग्र (Stigma): यह चिपचिपी सतह होती है जो पराग कणों को पकड़ने का काम करती है। इसकी सतह पर छोटे-छोटे रोम होते हैं जो पराग को चिपकने में मदद करते हैं।
2. वर्तिका (Style): यह एक नली जैसी संरचना है जो पराग नलिका को अंडाशय तक पहुंचने में मदद करती है।
3. अंडाशय (Ovary): यह सबसे महत्वपूर्ण भाग है जिसमें बीजांड (Ovules) होते हैं। यहीं से निषेचन के बाद बीज और फल का विकास होता है।
Real-World Connection: क्या आप जानते हैं कि टमाटर के फूल में नर और मादा दोनों अंग होते हैं? इसलिए एक अकेला टमाटर का पौधा भी फल दे सकता है!
पुंकेसर और पराग कण: नर प्रजनन की शक्ति
पुंकेसर की संरचना और विकास
पुंकेसर में दो मुख्य भाग होते हैं:
पुतंतु (Filament): यह एक लंबा, पतला भाग है जो परागकोश को उचित स्थिति में रखता है। इसकी लंबाई और स्थिति परागणकर्ताओं के अनुकूल होती है।
परागकोश (Anther): यह द्विकोष्ठीय संरचना है जिसमें चार परागकोष्ठ (Pollen Sacs) होते हैं। यहाँ पराग कण बनते हैं।
पराग कण का विकास (Microsporogenesis)
यह एक जटिल प्रक्रिया है जो निम्नलिखित चरणों में होती है:
- बीजाणु मातृ कोशिका (Pollen Mother Cell/Microsporocyte) परागकोष्ठ में बनती है
- अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis) से चार अगुणित कोशिकाएं बनती हैं
- प्रत्येक कोशिका पराग कण (Microspore) बन जाती है
- पराग कण में दो कोशिकाएं होती हैं: जनन कोशिका और कायिक कोशिका

Study Tip: पराग कण के विकास को याद रखने के लिए “PMC → Meiosis → 4 Microspores → Pollen Grain” का फॉर्मूला उपयोग करें।
पराग कण की संरचना और कार्य
एक परिपक्व पराग कण में:
- बाहरी भित्ति (Exine): यह मजबूत और टिकाऊ होती है, स्पोरोपोलेनिन से बनी होती है
- भीतरी भित्ति (Intine): यह पतली और लचीली होती है
- कायिक कोशिका: यह बड़ी होती है और पराग नलिका बनाती है
- जनन कोशिका: यह छोटी होती है और दो नर युग्मक बनाती है
Quick Check: पराग कण में कितनी कोशिकाएं होती हैं और उनके नाम क्या हैं?
उत्तर: दो कोशिकाएं – कायिक कोशिका और जनन कोशिका
बीजांड: नया जीवन का आधार
बीजांड की संरचना
बीजांड अंडाशय के अंदर होता है और इसमें निम्नलिखित भाग होते हैं:
1. बीजांडकाय (Nucellus): यह मुख्य ऊतक है जिसमें पोषक तत्व होते हैं
2. अध्यावरण (Integuments): ये सुरक्षात्मक परतें हैं जो बीजांडकाय को घेरती हैं। आमतौर पर दो अध्यावरण होते हैं – बाहरी और भीतरी।
3. बीजांडद्वार (Micropyle): यह एक छोटा छिद्र है जहाँ से पराग नलिका प्रवेश करती है
4. रज्जु (Funicle): यह बीजांड को अंडाशय से जोड़ने वाली संरचना है
5. नाभिका (Hilum): यह वह स्थान है जहाँ रज्जु बीजांड से जुड़ती है
भ्रूणकोश का विकास (Megasporogenesis)
यह प्रक्रिया निम्न चरणों में होती है:
- बीजाणु मातृ कोशिका (Megaspore Mother Cell) बीजांडकाय में बनती है
- अर्धसूत्री विभाजन से चार अगुणित कोशिकाएं बनती हैं
- तीन कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, केवल एक जीवित रहती है
- यह जीवित कोशिका तीन बार समसूत्री विभाजन करती है
- आठ कोशिकाओं वाला भ्रूणकोश बनता है

भ्रूणकोश की संरचना (7+1 व्यवस्था)
परिपक्व भ्रूणकोश में आठ कोशिकाएं होती हैं:
बीजांडद्वार की ओर (3 कोशिकाएं):
- 1 अंड कोशिका (Egg cell)
- 2 सहायक कोशिकाएं (Synergids)
केंद्र में (2 कोशिकाएं):
- 2 ध्रुवीय कोशिकाएं (Polar nuclei) – ये बाद में मिलकर द्वितीयक केंद्रक बनाती हैं
निभाग की ओर (3 कोशिकाएं):
- 3 प्रतिपादी कोशिकाएं (Antipodals)
Common Mistake Alert: छात्र अक्सर भ्रूणकोश में 8 कोशिकाएं होने की बात करते हैं, लेकिन वास्तव में 7 कोशिकाएं और 8 केंद्रक होते हैं क्योंकि केंद्रीय कोशिका में दो केंद्रक होते हैं।
परागण: जीवन की यात्रा का आरंभ
परागण की परिभाषा और महत्व
परागण वह प्रक्रिया है जिसमें पराग कण परागकोश से वर्तिकाग्र तक पहुंचते हैं। यह प्रजनन की पहली और अत्यंत महत्वपूर्ण अवस्था है।
परागण के प्रकार
1. स्वपरागण (Self-Pollination/Autogamy):
जब पराग कण उसी फूल के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं।
स्वपरागण के फायदे:
- परागणकर्ताओं पर निर्भरता नहीं
- कम ऊर्जा खर्च
- शुद्ध वंशावली बनी रहती है
स्वपरागण के नुकसान:
- आनुवंशिक विविधता में कमी
- हानिकारक लक्षणों का संचय
- रोग प्रतिरोधता में कमी
2. पर-परागण (Cross-Pollination/Allogamy):
जब पराग कण दूसरे पौधे के फूल के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं।
पर-परागण के फायदे:
- आनुवंशिक विविधता बढ़ती है
- बेहतर अनुकूलन क्षमता
- हानिकारक जीन का प्रभाव कम होता है
- संतति में जीवन शक्ति अधिक होती है
Real-World Connection: क्या आप जानते हैं कि मक्का में 95% पर-परागण होता है? इसीलिए अगर आप अपने बगीचे में केवल एक मक्का का पौधा लगाएं तो उसमें दाने नहीं बनेंगे!
स्वपरागण से बचने की युक्तियां (Devices to Prevent Self-Pollination)
प्रकृति में पौधों ने स्वपरागण से बचने के लिए कई तरीके विकसित किए हैं:
1. एकलिंगता (Dioecy): नर और मादा फूल अलग-अलग पौधों पर होते हैं।
उदाहरण: पपीता, खजूर
2. द्विलिंगता (Dichogamy): एक ही फूल में नर और मादा अंग अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं।
- पूर्वपुमंगता (Protandry): पुंकेसर पहले परिपक्व होते हैं (सूरजमुखी)
- पूर्वजायांगता (Protogyny): स्त्रीकेसर पहले परिपक्व होते हैं (अवोकाडो)
3. विषमवर्तिकता (Heterostyly): वर्तिका की लंबाई अलग-अलग होती है।
उदाहरण: प्राइमुला में लंबी और छोटी वर्तिका वाले फूल
4. स्व-असंगति (Self-Incompatibility): आनुवंशिक तंत्र जो अपने ही पराग को पहचानकर रोक देता है।
परागण के कारक (Agents of Pollination)
1. वायु परागण (Anemophily):
- हल्के और छोटे पराग कण
- बड़ी मात्रा में पराग उत्पादन
- वर्तिकाग्र पंखदार या चिपचिपे
- फूल छोटे और रंगहीन
उदाहरण: घास, गेहूं, मक्का, चीड़
2. जल परागण (Hydrophily):
- पानी में तैरने वाले पराग कण
- जलीय या अर्ध-जलीय पौधे
उदाहरण: वैलिसनेरिया, हाइड्रिला
3. कीट परागण (Entomophily):
- रंग-बिरंगे और सुगंधित फूल
- मकरंद और पराग का उत्पादन
- चिपचिपे और कांटेदार पराग कण
उदाहरण: गुलाब, सूरजमुखी, सरसों
4. पक्षी परागण (Ornithophily):
- बड़े और चमकदार फूल
- अधिक मकरंद उत्पादन
- मजबूत फूल संरचना
उदाहरण: बॉटल ब्रश, बिग्नोनिया
5. चमगादड़ परागण (Chiropterophily):
- रात में खिलने वाले फूल
- तेज गंध
- सफेद या हल्के रंग के फूल
उदाहरण: बाओबाब, केला के कुछ किस्म
Study Tip: परागण के कारक याद रखने के लिए “वायु-जल-कीट-पक्षी-चमगादड़” की श्रृंखला बनाएं और हर एक के लिए एक उदाहरण याद करें।
पराग-वर्तिकाग्र अंतर्क्रिया और पराग नलिका का विकास
पराग कण का अंकुरण
जब पराग कण उपयुक्त वर्तिकाग्र पर पहुंचता है:
- पहचान प्रक्रिया: वर्तिकाग्र पराग की प्रजाति की जांच करता है
- अंकुरण शुरुआत: उपयुक्त पराग कण में अंकुरण शुरू होता है
- पराग नलिका निकलना: कायिक कोशिका से पराग नलिका निकलती है
- जनन कोशिका विभाजन: जनन कोशिका दो नर युग्मक बनाती है
पराग नलिका की वृद्धि
पराग नलिका की वृद्धि एक निर्देशित प्रक्रिया है:
1. रासायनिक आकर्षण: भ्रूणकोश से निकलने वाले रसायन पराग नलिका को आकर्षित करते हैं
2. वर्तिका में प्रवेश: पराग नलिका वर्तिका के अंदर बढ़ती है
3. दिशा निर्देशन: सहायक कोशिकाएं विशेष रसायन स्रावित करती हैं
4. अंडाशय में प्रवेश: पराग नलिका बीजांडद्वार से भ्रूणकोश में पहुंचती है
Quick Check: पराग नलिका में कितने नर युग्मक होते हैं?
उत्तर: दो नर युग्मक होते हैं

निषेचन: द्विनिषेचन की अनूठी प्रक्रिया
द्विनिषेचन की खोज
द्विनिषेचन की खोज एस.जी. नवाशिन ने 1898 में की थी। यह पुष्पीय पौधों की एक अनूठी विशेषता है जो उन्हें अन्य पौधों से अलग करती है।
द्विनिषेचन की प्रक्रिया
जब पराग नलिका भ्रूणकोश में पहुंचती है:
1. पराग नलिका का फटना: पराग नलिका सहायक कोशिका के पास फट जाती है
2. नर युग्मकों का मुक्त होना: दो नर युग्मक भ्रूणकोश में पहुंच जाते हैं
3. पहला निषेचन (Syngamy):
- एक नर युग्मक + अंड कोशिका = युग्मनज (2n)
- युग्मनज से भ्रूण बनता है
4. दूसरा निषेचन (Triple Fusion):
- दूसरा नर युग्मक + द्वितीयक केंद्रक (2n) = प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (3n)
- इससे भ्रूणपोष बनता है
Real-World Connection: यही कारण है कि नारियल पानी (तरल भ्रूणपोष) त्रिगुणित (3n) होता है और इसमें भरपूर पोषक तत्व होते हैं!
द्विनिषेचन का महत्व
- भ्रूण का विकास: युग्मनज से नया पौधा बनता है
- भ्रूणपोष का निर्माण: विकसित हो रहे भ्रूण को पोषण मिलता है
- बीज की पूर्णता: दोनों निषेचन के बिना बीज नहीं बनता
- आनुवंशिक लाभ: अधिक विविधता और बेहतर अनुकूलन
Study Tip: द्विनिषेचन याद रखने के लिए “2 + 1 = 3, 1 + 1 = 2” का फॉर्मूला उपयोग करें। (2n केंद्रक + 1n युग्मक = 3n भ्रूणपोष, 1n अंडाणु + 1n युग्मक = 2n भ्रूण)

निषेचन के बाद की घटनाएं: भ्रूण विकास
भ्रूण का विकास (Embryogeny)
निषेचन के बाद युग्मनज में निम्नलिखित विकास होता है:
1. प्रारंभिक विभाजन:
- युग्मनज का पहला विभाजन अनुप्रस्थ होता है
- ऊपरी कोशिका से भ्रूण बनता है
- निचली कोशिका से निलंबक (Suspensor) बनता है
2. प्रो-भ्रूण अवस्था:
- कई कोशिकीय विभाजन
- भ्रूण की मूल संरचना का निर्माण
3. हृदयाकार भ्रूण:
- बीजपत्र (Cotyledons) का विकास शुरू
- मूलांकुर (Radicle) और प्ररोह शीर्ष (Plumule) का निर्माण
4. परिपक्व भ्रूण:
- स्पष्ट अंग विभेदन
- बीजपत्र, मूलांकुर, प्ररोह शीर्ष, और अधोबीजपत्री अक्ष
निलंबक की भूमिका
निलंबक एक महत्वपूर्ण संरचना है जो:
- भ्रूण को भ्रूणपोष में धकेलती है
- पोषक तत्वों का स्थानांतरण करती है
- भ्रूण को सहारा प्रदान करती है
- विकास के बाद नष्ट हो जाती है
Common Mistake Alert: छात्र अक्सर निलंबक को अनावश्यक समझते हैं, लेकिन यह भ्रूण विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
भ्रूणपोष का विकास
भ्रूणपोष का विकास तीन प्रकार से होता है:
1. न्यूक्लियर प्रकार (Nuclear Type):
- केवल केंद्रक विभाजन होता है
- बाद में कोशिका भित्ति बनती है
- सबसे सामान्य प्रकार (उदाहरण: धान, गेहूं)
2. कोशिकीय प्रकार (Cellular Type):
- हर केंद्रक विभाजन के साथ कोशिका भित्ति बनती है
- कम सामान्य (उदाहरण: पेटूनिया)
3. हेलोबियल प्रकार (Helobial Type):
- पहले विभाजन के बाद भित्ति बनती है
- बाकी विभाजन न्यूक्लियर होते हैं
- मध्यम सामान्य (उदाहरण: नारियल)
बीज विकास और संरचना
बीज का निर्माण
निषेचन के बाद बीजांड में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं:
1. अध्यावरण परिवर्तन:
- बाहरी अध्यावरण → बीज आवरण (टेस्टा)
- भीतरी अध्यावरण → टेगमेन
2. बीजांडकाय परिवर्तन:
- अधिकांश भाग नष्ट हो जाता है
- कभी-कभी पेरिस्पर्म बनता है
3. बीजांडद्वार परिवर्तन:
- बीज छिद्र (माइक्रोपाइल) बनता है
परिपक्व बीज की संरचना
1. बीज आवरण (Seed Coat):
- सुरक्षा प्रदान करता है
- नमी के नुकसान को रोकता है
- यांत्रिक क्षति से बचाता है
2. भ्रूण (Embryo):
- मूलांकुर (Radicle): भावी जड़ तंत्र
- प्ररोह शीर्ष (Plumule): भावी तना और पत्तियां
- बीजपत्र (Cotyledons): भोजन संग्रह या प्रकाश संश्लेषण
- अधोबीजपत्री अक्ष (Hypocotyl): मूलांकुर और बीजपत्र के बीच का भाग
3. भ्रूणपोष (Endosperm):
- भ्रूण के लिए भोजन संग्रह
- कुछ बीजों में अनुपस्थित (जैसे मटर, चना)
बीजों के प्रकार (भ्रूणपोष के आधार पर)
1. भ्रूणपोषी बीज (Endospermic/Albuminous Seeds):
- भ्रूणपोष उपस्थित रहता है
- बीजपत्र पतले होते हैं
- उदाहरण: मक्का, गेहूं, धान, अरंडी
2. अभ्रूणपोषी बीज (Non-endospermic/Exalbuminous Seeds):
- भ्रूणपोष विकास के दौरान समाप्त हो जाता है
- बीजपत्र मोटे और भोजन से भरे होते हैं
- उदाहरण: मटर, चना, सेम, सरसों
Real-World Connection: जब आप मूंगफली खाते हैं तो दो मोटे टुकड़े बीजपत्र हैं जिनमें भोजन संग्रहीत है। मूंगफली अभ्रूणपोषी बीज का उदाहरण है।

फल विकास और प्रकार
फल का निर्माण (Fruit Development)
निषेचन के बाद अंडाशय में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं:
1. अंडाशय भित्ति परिवर्तन:
- अंडाशय भित्ति → फल भित्ति (पेरिकार्प)
- आकार में वृद्धि
- रंग और गुणधर्म में परिवर्तन
2. हार्मोनल नियंत्रण:
- ऑक्सिन और जिब्बेरेलिन की भूमिका
- साइटोकाइनिन से कोशिका विभाजन
- एथिलीन से पकना
फलभित्ति की संरचना
फलभित्ति के तीन भाग होते हैं:
1. बाह्य फलभित्ति (Epicarp/Exocarp):
- सबसे बाहरी परत
- सुरक्षात्मक कार्य
- उदाहरण: आम का छिलका
2. मध्य फलभित्ति (Mesocarp):
- मध्य की परत
- आमतौर पर मांसल
- उदाहरण: आम का गूदा
3. अंतः फलभित्ति (Endocarp):
- सबसे भीतरी परत
- कभी मजबूत, कभी कोमल
- उदाहरण: आम की गुठली की सख्त परत
फलों के प्रकार
संरचना के आधार पर:
1. सरल फल (Simple Fruits):
एक अंडाशय से बने फल
(a) मांसल फल (Fleshy Fruits):
- बेरी (Berry): संपूर्ण फलभित्ति मांसल (अंगूर, टमाटर)
- ड्रूप (Drupe): बाहरी भाग मांसल, भीतरी भाग कठोर (आम, नारियल)
- पोम (Pome): फलभित्ति + पुष्पासन मांसल (सेब, नाशपाती)
(b) शुष्क फल (Dry Fruits):
स्फुटनशील (Dehiscent):
- फली (Legume): एक सिवन से खुलती है (मटर)
- सिलिक्वा (Siliqua): दो सिवन से खुलती है (सरसों)
- कैप्सूल (Capsule): कई तरीकों से खुलती है (धतूरा)
अस्फुटनशील (Indehiscent):
- एकीन (Achene): एक बीज, पतली भित्ति (सूरजमुखी)
- कैरियोप्सिस (Caryopsis): बीज आवरण फल भित्ति से जुड़ा (गेहूं)
- नट (Nut): कठोर भित्ति (बादाम)
2. समुच्चित फल (Aggregate Fruits):
एक फूल के कई अंडाशयों से बने (स्ट्रॉबेरी, रसभरी)
3. संयुक्त फल (Composite/Multiple Fruits):
कई फूलों के अंडाशयों से बने (अनानास, शहतूत)
Study Tip: फलों के प्रकार याद रखने के लिए “सरल-समुच्चित-संयुक्त” और हर प्रकार के लिए दो उदाहरण याद करें।
बीज रहित फल (Parthenocarpy)
कभी-कभी निषेचन के बिना भी फल बन जाते हैं:
प्राकृतिक पारथेनोकार्पी:
- आनुवंशिक कारण
- उदाहरण: केला, अंजीर, खुबानी
कृत्रिम पारथेनोकार्पी:
- हार्मोन उपचार से
- व्यावसायिक महत्व
- बीज रहित फल मिलते हैं
Real-World Connection: आजकल बाज़ार में मिलने वाले बीज रहित तरबूज और अंगूर कृत्रिम पारथेनोकार्पी के उदाहरण हैं।
बीज और फल प्रकीर्णन
प्रकीर्णन का महत्व
बीज और फल प्रकीर्णन के निम्नलिखित फायदे हैं:
- आवास का विस्तार: नए क्षेत्रों में पौधे फैलते हैं
- प्रतिस्पर्धा में कमी: मातृ पौधे के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं
- आनुवंशिक मिश्रण: दूर के पौधों से परागण संभव
- जोखिम वितरण: सभी संतति एक जगह नहीं होती
प्रकीर्णन के कारक
1. वायु प्रकीर्णन (Anemochory):
अनुकूलन:
- हल्के बीज या फल
- पंख, रोम, या पैराशूट जैसी संरचनाएं
- छोटा आकार
उदाहरण:
- पंखयुक्त: मेपल, साल
- रोमयुक्त: कपास, अकवन (डंडेलायन)
- गुब्बारे जैसे: फिसेलिस
2. जल प्रकीर्णन (Hydrochory):
अनुकूलन:
- जलरोधी आवरण
- हवा से भरी संरचनाएं
- तैरने की क्षमता
उदाहरण:
- नारियल (समुद्री प्रवाह से)
- कमल (तालाब में तैरते हैं)
- सिंघाड़ा
3. जंतु प्रकीर्णन (Zoochory):
(a) बाह्य स्थानांतरण:
- कांटे, हुक, चिपचिपी सतह
- जंतुओं के बाल या कपड़ों में चिपकना
- उदाहरण: गोकरू, एकेशिया
(b) अंतः स्थानांतरण:
- रंग-बिरंगे, मीठे, सुगंधित फल
- जंतुओं द्वारा खाना और मल के साथ निकालना
- उदाहरण: आम, जामुन, अमरूद
4. विस्फोटी प्रकीर्णन (Explosive Dispersal):
तंत्र:
- फल भित्ति में तनाव
- अचानक फटना
- बीजों का दूर तक फैंकना
उदाहरण:
- बालसम (छुई-मुई के फल)
- अरंडी
- मटर (सूखने पर)
Study Tip: प्रकीर्णन के कारक याद रखने के लिए “वायु-जल-जंतु-विस्फोट” की श्रृंखला बनाएं और हर एक के लिए दो अनुकूलन और दो उदाहरण याद करें।
विशेष प्रकार का प्रजनन
असंगजनन (Apomixis)
असंगजनन वह प्रक्रिया है जिसमें निषेचन के बिना बीज बनते हैं:
प्रकार:
1. अलैंगिक प्रजनन (Vegetative Apomixis):
- न्यूसेलस या इंटेगुमेंट से भ्रूण विकास
- उदाहरण: साइट्रस, मैंगो के कुछ किस्म
2. अर्धलैंगिक प्रजनन (Agamospermy):
- अनिषेचित अंड कोशिका से भ्रूण विकास
- उदाहरण: डंडेलायन, घास की कुछ प्रजातियां
लाभ:
- आनुवंशिक रूप से समान संतति
- वांछित गुणों का संरक्षण
- व्यावसायिक महत्व
3. बहुभ्रूणता (Polyembryony):
एक बीज में एक से अधिक भ्रूण होना:
कारण:
- न्यूसेलर भ्रूण बनना
- एक से अधिक युग्मनज बनना
- भ्रूण का विभाजन
उदाहरण:
- साइट्रस फल (नींबू, संतरा)
- आम की कुछ किस्में
- जामुन
महत्व:
- एक बीज से कई पौधे
- क्लोनल प्रजनन
- बागवानी में उपयोग
Real-World Connection: जब आप नींबू का बीज बोते हैं तो कभी-कभी एक बीज से दो-तीन पौधे निकलते हैं। यह बहुभ्रूणता का उदाहरण है।
परीक्षा की तैयारी: महत्वपूर्ण प्रश्न और अभ्यास
वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)
प्रश्न 1: पुष्पीय पौधों में द्विनिषेचन की खोज किसने की थी?
(a) मेंडल (b) नवाशिन (c) डार्विन (d) हुक
उत्तर: (b) नवाशिन
व्याख्या: एस.जी. नवाशिन ने 1898 में द्विनिषेचन की खोज की थी। इस प्रक्रिया में दो निषेचन होते हैं – एक भ्रूण बनने के लिए और दूसरा भ्रूणपोष बनने के लिए।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सा अभ्रूणपोषी बीज का उदाहरण है?
(a) मक्का (b) गेहूं (c) मटर (d) धान
उत्तर: (c) मटर
व्याख्या: मटर में भ्रूणपोष विकास के दौरान समाप्त हो जाता है और भोजन बीजपत्र में संग्रहीत होता है।
प्रश्न 3: भ्रूणकोश में कुल कितनी कोशिकाएं होती हैं?
(a) 6 (b) 7 (c) 8 (d) 9
उत्तर: (b) 7
व्याख्या: भ्रूणकोश में 7 कोशिकाएं और 8 केंद्रक होते हैं। केंद्रीय कोशिका में दो ध्रुवीय केंद्रक होते हैं।
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा वायु परागण का लक्षण नहीं है?
(a) छोटे फूल (b) रंगीन पंखुड़ियां (c) हल्के पराग कण (d) पंखदार वर्तिकाग्र
उत्तर: (b) रंगीन पंखुड़ियां
व्याख्या: वायु परागित फूलों में रंगीन पंखुड़ियां नहीं होतीं क्योंकि उन्हें कीटों को आकर्षित करने की जरूरत नहीं होती।
प्रश्न 5: ट्रिप्लॉइड भ्रूणपोष का निर्माण होता है:
(a) एक नर युग्मक + अंड कोशिका
(b) एक नर युग्मक + द्वितीयक केंद्रक
(c) दो नर युग्मक + अंड कोशिका
(d) दो नर युग्मक + द्वितीयक केंद्रक
उत्तर: (b) एक नर युग्मक + द्वितीयक केंद्रक
व्याख्या: द्वितीयक केंद्रक (2n) + एक नर युग्मक (n) = त्रिगुणित भ्रूणपोष (3n)
लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Questions)
प्रश्न 1: स्वपरागण से बचने की कोई चार युक्तियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- एकलिंगता (Dioecy): नर और मादा फूल अलग-अलग पौधों पर
- द्विलिंगता (Dichogamy): नर और मादा अंगों का अलग-अलग समय पर परिपक्व होना
- विषमवर्तिकता (Heterostyly): अलग-अलग लंबाई की वर्तिकाएं
- स्व-असंगति (Self-incompatibility): आनुवंशिक तंत्र द्वारा अपने पराग की अस्वीकृति
प्रश्न 2: द्विनिषेचन क्या है? इसका महत्व समझाइए।
उत्तर:
द्विनिषेचन पुष्पीय पौधों की विशेष प्रक्रिया है जिसमें दो निषेचन होते हैं:
प्रक्रिया:
- पहला निषेचन: एक नर युग्मक + अंड कोशिका = युग्मनज (2n)
- दूसरा निषेचन: दूसरा नर युग्मक + द्वितीयक केंद्रक (2n) = प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (3n)
महत्व:
- भ्रूण और भ्रूणपोष दोनों का एक साथ निर्माण
- विकासशील भ्रूण के लिए तुरंत पोषण उपलब्ध
- बीज की पूर्णता के लिए आवश्यक
- पुष्पीय पौधों की विकासीय सफलता का कारण
प्रश्न 3: कीट परागण के अनुकूलन लिखिए।
उत्तर:
फूलों में अनुकूलन:
- रंग-बिरंगे फूल: कीटों को आकर्षित करने के लिए
- सुगंध: कीटों को दूर से आकर्षित करना
- मकरंद उत्पादन: कीटों के लिए भोजन
- मजबूत संरचना: कीटों का भार सहन करना
- उपयुक्त आकार: कीटों के लिए उतरने का स्थान
पराग में अनुकूलन:
- चिपचिपे और कांटेदार पराग: कीटों के शरीर पर चिपकना
- उपयुक्त मात्रा: न अधिक न कम
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Questions)
प्रश्न 1: पुष्पीय पौधों में नर युग्मकोद्भिद के विकास की व्याख्या करें।
उत्तर:
बीजाणुजनन (Microsporogenesis):
1. प्रारंभिक अवस्था:
- परागकोश के अंदर बीजाणु ऊतक बनता है
- बीजाणु मातृ कोशिकाएं (Pollen Mother Cells) विकसित होती हैं
- ये कोशिकाएं द्विगुणित (2n) होती हैं
2. अर्धसूत्री विभाजन:
- प्रत्येक PMC अर्धसूत्री विभाजन करती है
- चार अगुणित (n) बीजाणु (Microspores) बनते हैं
- ये चारों कोशिकाएं एक साथ टेट्राड बनाती हैं
3. बीजाणुओं का पृथक्करण:
- टेट्राड की कोशिकाएं अलग हो जाती हैं
- प्रत्येक बीजाणु स्वतंत्र हो जाता है
- कैलोज एंजाइम टेट्राड को तोड़ता है
युग्मकोद्भिद विकास (Microgametogenesis):
4. पराग कण का निर्माण:
- बीजाणु की भित्ति मोटी होती है
- एक्साइन (बाहरी) और इंटाइन (भीतरी) परत बनती है
- एक्साइन स्पोरोपोलेनिन से बनी होती है
5. केंद्रक विभाजन:
- बीजाणु का केंद्रक विभाजित होता है
- दो असमान कोशिकाएं बनती हैं:
- बड़ी कायिक कोशिका (Vegetative cell)
- छोटी जनन कोशिका (Generative cell)
6. परिपक्व पराग कण:
- द्विकोशिकीय संरचना
- कायिक कोशिका: पराग नलिका बनाती है
- जनन कोशिका: बाद में दो नर युग्मक बनाती है
महत्व:
- पुरुष युग्मकों का उत्पादन
- वंशानुक्रम में योगदान
- आनुवंशिक विविधता का स्रोत
आंकड़े आधारित प्रश्न (Data Analysis Questions)
प्रश्न 1: निम्नलिखित तालिका का अध्ययन करें:
[INSERT TABLE: विभिन्न पौधों में परागण के प्रकार]
पौधा | परागण प्रकार | पराग कणों की संख्या | वर्तिकाग्र प्रकार |
---|---|---|---|
गेहूं | वायु | 20,000 | पंखदार |
गुलाब | कीट | 5,000 | चिपचिपा |
मक्का | वायु | 25,000 | रेशमी |
सूरजमुखी | कीट | 8,000 | चिपचिपा |
प्रश्न:
(a) वायु परागित और कीट परागित पौधों में पराग कणों की संख्या में क्या अंतर है?
(b) वर्तिकाग्र के प्रकार और परागण विधि में क्या संबंध है?
उत्तर:
(a) वायु परागित पौधों में पराग कणों की संख्या अधिक होती है (20,000-25,000) जबकि कीट परागित पौधों में कम (5,000-8,000)। यह इसलिए क्योंकि वायु परागण में अधिक पराग बर्बाद होते हैं।
(b) वायु परागित पौधों में वर्तिकाग्र पंखदार या रेशमी होते हैं जो पराग को पकड़ने में सहायक होते हैं। कीट परागित पौधों में चिपचिपे वर्तिकाग्र होते हैं जो कीटों से आने वाले पराग को चिपका लेते हैं।
सामान्य गलतियां और उनसे बचने के उपाय
गलती 1: द्विनिषेचन में केंद्रकों की संख्या की गलत गणना
गलत समझ: भ्रूणपोष 2n + n = 2n होता है
सही समझ: भ्रूणपोष 2n + n = 3n होता है
याद रखने का तरीका: द्वितीयक केंद्रक पहले से ही द्विगुणित (2n) है, इसमें एक नर युग्मक (n) मिलकर त्रिगुणित (3n) भ्रूणपोष बनता है।
गलती 2: पराग कण और बीजाणु में भ्रम
गलत समझ: पराग कण और बीजाणु एक ही चीज हैं
सही समझ: बीजाणु एकल कोशिका है, पराग कण द्विकोशिकीय संरचना है
गलती 3: भ्रूणकोश में कोशिकाओं की गलत संख्या
गलत समझ: भ्रूणकोश में 8 कोशिकाएं होती हैं
सही समझ: भ्रूणकोश में 7 कोशिकाएं और 8 केंद्रक होते हैं
गलती 4: फल और बीज के विकास में भ्रम
गलत समझ: बीज अंडाशय से बनता है
सही समझ: बीज बीजांड से बनता है, फल अंडाशय से बनता है
अध्ययन युक्तियां
याददाश्त की तकनीकें
1. संक्षिप्त रूप (Mnemonics):
- भ्रूणकोश: “एक अंडा, दो सहायक, दो ध्रुवीय, तीन प्रतिपादी” (1+2+2+3=8 केंद्रक)
- पराग विकास: “PMC → M → 4M → PG” (Pollen Mother Cell → Meiosis → 4 Microspores → Pollen Grain)
2. दृश्य सहायता:
- प्रत्येक संरचना का आरेख बनाएं
- रंगीन कलम से महत्वपूर्ण भागों को चिह्नित करें
- फ्लो चार्ट बनाकर प्रक्रियाओं को समझें
3. तुलनात्मक अध्ययन:
- स्वपरागण vs पर-परागण
- भ्रूणपोषी vs अभ्रूणपोषी बीज
- विभिन्न परागण विधियों की तुलना
करियर संबंध और भविष्य की संभावनाएं
संबंधित क्षेत्र
1. कृषि विज्ञान:
- पौधों के प्रजनन में सुधार
- नई किस्मों का विकास
- बीज उत्पादन तकनीक
2. बागवानी:
- फल और फूलों की खेती
- ग्राफ्टिंग और बडिंग तकनीक
- नर्सरी प्रबंधन
3. अनुसंधान क्षेत्र:
- पौधों की आनुवंशिकता
- जैव प्रौद्योगिकी
- पारिस्थितिकी अनुसंधान
4. पर्यावरण संरक्षण:
- बीज बैंकिंग
- वन्यजीव संरक्षण
- जैव विविधता अनुरक्षण
वर्तमान अनुसंधान क्षेत्र
1. आणविक जीव विज्ञान:
- जीन एडिटिंग तकनीक
- प्रजनन संबंधी जीनों की पहचान
- आनुवंशिक इंजीनियरिंग
2. जलवायु परिवर्तन:
- सूखा प्रतिरोधी किस्में
- बदलते मौसम के अनुकूल पौधे
- कार्बन न्यूट्रल कृषि
3. टिकाऊ कृषि:
- जैविक खेती
- प्राकृतिक परागणकर्ताओं का संरक्षण
- रसायन मुक्त प्रजनन तकनीक
निष्कर्ष: सफलता की ओर आपका रोडमैप
“पुष्पीय पौधों में लैंगिक प्रजनन” सिर्फ एक अध्याय नहीं है, बल्कि जीवन की सबसे मूलभूत प्रक्रियाओं को समझने की कुंजी है। इस अध्याय में आपने सीखा है कि कैसे एक छोटा सा पराग कण एक संपूर्ण पौधे का जन्म दे सकता है। यह प्रक्रिया न केवल प्राकृतिक सुंदरता का स्रोत है बल्कि मानव जीवन के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है
याद रखें, जीव विज्ञान में सफलता का रहस्य रटंत में नहीं बल्कि समझ में है। जब आप इन प्रक्रियाओं को वास्तविक जीवन से जोड़कर देखेंगे, तो न केवल आपको परीक्षा में अच्छे अंक मिलेंगे बल्कि आप प्रकृति की अद्भुत दुनिया के एक सच्चे समझदार बन जाएंगे।
अपने सपनों को साकार करने की शुरुआत आज से ही करें। आपकी सफलता की यात्रा में Solvefy AI हमेशा आपके साथ है!
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